योग फ्रंट में सभी का स्वागत है। सबसे पहले बात करते हैं कि योग विषय का आयुर्वेद के चिकित्सकों की शिक्षा में क्या सम्बन्ध हैं।
तो आएं बात करते हैं राष्ट्र के आयुर्वेद अनुसन्धान संस्थान तथा CCIM की। यह दो संस्थान मुख्य हैं आयुर्वेद की शिक्षा के लिए। इनकी वेबसाइट पर दी गई जानकारी अनुसार आयुर्वेद के तीसरे चरण जिसे 3rd Proff भी कहा जाता है में एक विषय है स्वस्थ्यवृत जो पेपर ए और पेपर बी में बंटा हुआ है।
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हम बात करते हैं पेपर बी की जो 50 अंकों का रहता है। यह विषय है योग।
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जिसका सिलेबस हम यहां दे रहे हैं। तो इस सिलेबस के अनुसार आयुर्वेद शिष्यों को आसन, बन्ध, मुद्राएं, षट्कर्म, प्राणयाम और चक्रों का व्यवहारिक वं किताबी ज्ञान दोनों होने चाहिए। जिसके लिए एक योगाचार्य नियुक्त करने के लिए प्रावधान है। जिसको योग इंस्ट्रक्टर, योग अध्यापक, योग अटेंडेंट आदि के नाम वाले पदों पर रखा जाता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी 100 मे से केवल 5% आयुवेदिक चिकित्सकों को योग ज्ञान है और उसमे केवल 2% है जो व्हवारिक ज्ञान भी रखते हैं। इसका कारण है महाविद्यालय में इस पोस्ट को न दर्शाना, योगशिक्षक की नियुक्ति न करना, अथवा कम पढ़े लिखे व्यक्ति को बिठा देना याँ फिर कम पैसे देने और व्यक्ति को अस्थाई रूप से रखना। जिस कारण योग विषय का यह हाल सभी आयुर्वेदिक महाविद्यालय में है।
कुछ मुख्य महाविद्यालयों की अगर बात करें तो
सरकारी महाविधालय पटियाला में है जहां पहले कहा गया की पोस्ट ही खत्म कर दी गई है उसके बाद आवाज़ उठाने पर अस्थाई रूप से छःमहीने के लिए व्यक्ति नियुक्त किया गया।
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दयानंद कॉलेज में भी कुछ यही हालात है और उर्मिला देवी में तो ऐसी किसी पोस्ट की नियुक्ति ही नही दिखाई गई।
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![](https://lh3.googleusercontent.com/-FPB1wI6p7J4/Xw0ss4QRtJI/AAAAAAAAAT4/tna-VoZpx-Uqcj8Q2ZWqukKUK4MPYXeMACLcBGAsYHQ/s1600/1594698928426074-7.png)
इस सबका कारण
इस सबका कारण है एक तो पढ़े लिखे योग शिक्षकों का अभाव जो योग में व्यवहारिक तथा शैक्षिक ज्ञान भी रखते हैं दूसरा संस्थाएं अपना पैसा बचाने में लगीं हैं।
नुकसान एक का नही अनेकों का है
जी सही पढ़ा नुकसान सबका है क्योंकि चाहे इस कारण कई पढ़े लिखे योगशिक्षक बेरोजगार बैठे हैं तथा उनकी नौकरी शीफर्शी तथा वो लोग बैठे है जिनको ज्ञान नही और टीवी देख देख सीखे हैं। बल्कि उन डॉक्टर्स को भी है जिनका अपनी पैथी से विश्वास उठ जाता है और उनकी शिक्षा अधूरी रहने के कारण वो अलोपथी को अपना लेते हैं और इसका निष्कर्ष आज एलोपैथी हर किसी की प्लेट में परोसी जा रही है जिसके कारण बीमारियीं में वृद्धि हो रही है।
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